RAM Mandir Pran Pratishtha: 22 January 2024 Historical Significance Day of India “Jai Shri Ram”
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठाः भारत के ऐतिहासिक महत्व का दिन 'जय श्री राम' गुनातीत सचराचर स्वामी। राम उमा सब अंतरजामी॥
संपूर्ण भारत वर्ष में उत्साह का महौल है क्योंकि राम आ रहे हैं, हमारे राम हैं ही ऐसे कि उनके कदम जहां भी पढ़ते हैं संपूर्ण धरा उनकी दीवानी हो जाती है, भगवान राम की अयोध्या मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा “RAM Mandir Pran Pratishtha” भारत की वैश्विक पटल पर अमिट छाप है, संपूर्ण भारत वर्ष को एक एतिहासिक गौरवपूर्ण क्षण जिसमें हर भारतीय भाव विभोर है, इस परमानंद की अनूभूति के लिए हमारे राजनैतिक व्यवस्थापकों के लिए वर्ल्डब्रिज की टीम से साधुवाद.
दरअसल राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा भारत देश में मुद्दा होना ही नहीं चाहिए था लेकिन जो व्यक्ति जंगल को अपना घर समझता है और जंगल में भी अपने परिवार से ज्यादा प्रेम पाता है तो उसे घर में प्यार भला कौन न देगा, देर से ही सही लेकिन आज राम विराजमान हो रहे हैं जोकि हर भारतीय के लिये गौरव की बात है.
मर्यादा पुररूषोत्तम राम जब विराजमान हो रहे हैं तो हमें उनके स्वागत में क्या करना चाहिए, हमने लाखों लोगों को प्राणप्रतिष्ठा के साक्षी होने के लिए आमंत्रित तो किया है किंतु जो विराजमान होने आ रहे हैं क्या उन्होंने हमारा निमंत्रण स्वीकार किया है?
पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी॥
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी। अधम जाति मैं जड़मति भारी॥
राम के स्वागत में जिस प्रकार सबरी की व्याकुलता थी, जैसी उनकी तैयारी ने श्रीराम को भी भाव-विभोर कर दिया, क्या ऐसी तैयारी और व्याकुलता हमने अपने अंदर महसूस की? माता कौशल्या ने श्री राम से कहा है कि बड़भागी बनु अवध अभागी। जो रघुबंसतिलक तुम्ह त्यागी॥ हे रघुवंस के तिलक, वन को आप जा रहे हैं वह बड़ा ही भाग्यशाली है और यह अवध की भूमि अभागी है. इस चौपाई का यदि हम एक साधारण सा अर्थ लें तो राम पितृ आज्ञा को पूर्ण करने नहीं बल्कि वो हमारे लिये वन की ओर आए थे ताकि हमें अपने संस्कृति का संज्ञान हो सके.
राम सिर्फ एक नाम नहीं, राम एक आधार है, राम एक संविधान हैं, राम एक योग हैं, राम एक संस्कृति है, राम प्रज्ञा है, राम पुराण है, राम शाश्वत है, राम एक राष्ट्र है, कण-कण में व्यापने वाले, जीवों को चेतना देने वाले हैं, भगवान शिव भी राम को अपना आराध्य कहते हैं, उनके पृथ्वी पर होने से संपूर्ण जगत के देवता भी अपने को नर रूप में अवतरित करना चाहते हैं, आज जबकि हम राम की प्राण प्रतिष्ठा करने जा रहे हैं तो हमारा ध्येय भी उतना ही बड़ा होना चाहिए जितने हमारे राम हैं.
आज हम भारत की विविध संस्कृति को जिस प्रकार देख रहे हैं ठीक उसी प्रकार कभी श्रीराम ने अपनी यात्रा के दौरान देखा होगा, हमारी विविधता जो आज भी हमारे लिए चुनौती है उसे राम को भी चुनौतीपूर्ण रहा होगा, आज जबकि हम एक सुशिक्षित और संवैधानिक समाज के हिस्सा है और उसके बावजूद भी देश की हजारों जनजातियों को एक सूत्र में नहीं पिरो पा रहे हैं.
भाषा का कभी मुख्य उद्देश्य सिर्फ अपनी बात को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाना रहा है और आज हमारे पास भाषा का पूर्ण विज्ञान है, लेकिन विडंबना यह है कि आज भी हम अपनी बात को रखने में सक्षम नहीं है और एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं, तो क्या राम को भी यह समस्या नहीं आई होगी, जब वो अयोध्या से निकलते हुए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, नागपुर, नासिक से होते हुए सुदूर दक्षिण में स्वयं को स्थापित करते हुए विभिन्न संस्कृतियों के साथ तालमेल बिठाते हुए अपना वनवास तय किया होगा.
इसके बावजूद भी वो सफल हुए और हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत बने, आज हमें राम से यह सबसे बड़ी सीख लेनी होगी जिसमें हम अपना अहंकार को दरकिनार करते हुए एक दूसरे की संस्कृति का सम्मान करते हुए आपस में तालमेल बनाये ताकि जो श्रीराम ने अपने राज्य में जो चाहा वह हम अपने भारत में स्थापित कर सकें,
श्रीराम के महत्वपूर्ण गुण में से क्षमा का अनुसरण हमें करना होगा, क्षमा का महत्व तो आज दुनिया के समस्त धर्मों में पढ़ने और सुनने में मिल जाएगा लेकिन हम क्षमा के सही मायने नहीं समझ पा रहे हैं, आपकी क्षमा कितनी बढ़ी हो सकती है क्या श्रीराम के क्षमा की जितनी, बाइबिल भी कहती है कि हे परमेश्वर आप इन्हे क्षमा करना क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं, और इन सभी के पापों की सजा में पाऊं और इन सभी को आपकी क्षमा प्राप्त हो.
कुछ ऐसा ही क्षमा का पाठ हमें श्रीराम से भी मिलता है क्योंकि दशानन उनके लिए कभी दुश्मन नहीं हुए क्योंकि उन्होंने कभी उन्हें अपना दुश्मन नहीं माना और रावण को भी अपने द्वारा किये गये पापों का प्रायश्चित स्वरूप क्षमा करने के लिए प्रयास करते रहे, किंतु रावण अपने अभिमान और अहंकार के चलते इसे स्वीकार नहीं कर सका, श्री राम ने रावण का अंत न करते हुए रावणरूपी बुराई के अंत पर कार्य किया और रावण के अंतिम समय में भी उसके ज्ञान को अपने भाई लक्ष्मण को देने के लिए कहा.
और अभी तो ये शुरूआत है जब श्रीराम सिर्फ मंदिर तक पहुंचे हैं, हमें प्रण करना होगा की भारत भूमि की हर वह जगह जहां श्री राम के चरण पड़े, वहॉं तक उनके आदर्शों को स्थापित करना होगा, ताकि संपूर्ण भारत राममय हो सके, हमारी भावी पीढ़ी राम को बेहतर से जान पाऍं.
जय श्री राम