ध्यान और सेवा के प्रेरणास्त्रोत: 20वीं सदी के महान आध्यात्मिक संत 108 Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj का जीवन और उपदेश
Table of Contents
Toggle"भावांजलि" Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj महाराज जी: ध्यान और सेवा के प्रेरणास्त्रोत, 20वीं सदी महान संत उनका जीवन और उपदेश
Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj एक प्रख्यात दिगम्बर जैन आचार्य थे, जिनकी विद्वता और तप के लिये संपूर्ण भारतवर्ष कृतघ्न हुआ है, आचार्य श्री अंग्रेजी सहित 8 भाषाओं के ज्ञाता रहे हैं. कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन वे धरती पर अवतरित हुए, उनके पिता श्री मल्लप्पा जोकि मल्लिसागर मुनि के नाम से जाने गए उनकी माता श्रीमती श्रीमंती जो कि आर्यिका समयमति हुई
Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य श्री ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर परम्परा के थे, आचार्य विद्यासागर को 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया, कालांतर में उनके भाई और परिवार के सभी लोग सन्यास ले चुके हैं, उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर कहलाये. उनके बड़े भाई भी उनसे दीक्षा लेकर मुनि उत्कृष्ट सागर जी महाराज कहलाए.
सन्यास के बाद, Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj ने जैन धर्म ही नहीं वरन उनसे जुड़े किसी भी समुदाय के लोगों को अपने आशीर्वाद से उनकी किस्मत को रोशन किया है उनकी उच्चतम आध्यात्मिक शिक्षा जैन संत के रूप में अपने जीवन का समर्पण करते हुए पूर्ण हुई, उन्होंने लोगों को धार्मिक ज्ञान और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित किया और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन किया।
Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj की विशेषता उनकी शांति, समाधान, और ध्यान थी। उन्होंने अपने जीवन में आत्मज्ञान और परमार्थ की प्राप्ति को प्राथमिकता दी और उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग और अपने शिष्यों को भी इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं, उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में विशाल रचनाएं सृजित की है, उनकी रचनाओं पर देश के कई शोधार्थियों ने अपने मास्टर्स और डॉक्टर्स प्रोग्राम में शोध किया है, उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं
उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा है आचार्य विद्यासागर जी महाराज कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्त्रोत रहे हैं, उन्होंने सागर जिले की केन्द्रीय जेल में लंबे समय से सजा काट रहे बंदियों को अपने प्रेरणा वचनों से ओतप्रोत किया और जेल ही हथकरघा और हेण्डीक्राफ्ट जैसे व्यवसाय से उन्हें जोड़कर लाभान्वित किया है.
उन्हीं की प्रेरणा और सत्कर्म भाव से प्रेरित होकर सागर जिले के जैन बंधुओं और देश-विदेश के जैन और सभी समुदाय ने मिलकर भाग्योदय तीर्थ धर्माथ चिकित्सालय की नीव रखी जो जिले के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में वरदान साबित हुई है,
Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj के निधन ने अनेकों लोगों के दिलों में एक रिक्त स्थान छोड़ दिया है, लेकिन उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनके उपदेशों को याद रखकर उनका आदर्श जीवन जीने का संकल्प लिया है।
Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj जिन्हें राष्ट्रीय संत और दिगंबर मुनि के रूप में स्वीकारा गया है, उन्होंने 18 फरवरी की मध्यरात्रि में छत्तीसगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में सल्लेखना पूर्व समाधि ली एवं पंचतत्व में विलीन हो गए, संपूर्ण विश्व में जैन संत होना अतुलनीय कठोर तपस्या कोई साधारण कार्य नहीं है चारों ऋतुओं में निर्वस्त्र रहकर पैदल ही भ्रमण करने के अलावा अनेकों नियमों का पालन करना निश्चित ही एक क्षत्रिय गुण ही है, ब्रह्मलीन आचार्य विद्यासागर जी महाराज की जीवन यात्रा विलक्षण रही.
22 वर्ष की उम्र में सन्यास दीक्षा के उपरांत उन्होंने जीवन-भर स्वनिर्धारित कठोर नियमों का पालन किया जिसकी कल्पना सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता, आहार से लेकर सभी दैनंदिनी कार्यों में बड़े कठोर निर्णय एक तपस्या ही थी, वास्तव में वे पृथ्वी पर 22 वीं सदी के जीवित संतरूपी ईश्वर ही थे, उनका सागर शहर के प्रति गहरा लगाव था, उन्होंने शहर को कई बढे़ मंदिरों की नींव रखकर जैन धर्म को पूर्ण स्थापित किया है.
Acharyashri Vidyasagar Ji Maharaj के निधन ने अनेकों लोगों के दिलों में एक रिक्त स्थान छोड़ दिया है, लेकिन उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनके उपदेशों को याद रखकर उनका आदर्श जीवन जीने का संकल्प लिया है। ऐसे ही कुछ उपदेशों को संकलित कर Worldbridge ने जनजन तक पहुंचाने के लिए छोटा सा प्रयास किया है.
Worldbridge के निदेशक को अपने जीवन में मुनिश्री के विचारों को उनके द्वारा कहे गये वचनों का डायरी लेखन को लिपिबध्द कर जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिस कारण उनकी अमिट छाप निर्माता के जीवन पर सदैव रहेगी. उनके द्वारा कहे गये कुछ वचन जो हमें प्राप्त हुए उनका व्याख्यान जनमानस के लिए प्रस्तुत है –
• कर्म के पास इतनी शक्ति नहीं है कि आत्मा की शक्ति को पूर्ण रूप से मिटा सके, इसलिए सभी जीवों में सामान्य रूप से ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम पाया जाता है.
• यदि कर्म के उदय में सब कुछ हो जायेगा ऐसा सोचकर पुरुषार्थ नहीं करोगे तो कर्म निर्जरा कैसे करोगे ? भगवान् ने हमें तप के माध्यम से कर्म निर्जरा करने का उपदेश दिया है।
• इस संसार में सही रास्ता मिलना बहुत दुर्लभ है, जिनके प्रसाद से यह रास्ता मिला है तो उनके गुणों की स्तुति करने से नहीं चूकना चाहिए.
• स्वभाव को भूलने वाला ही क्रोध कर सकता है, क्रोध हमारा स्वभाव नहीं है, इस विश्वास को मूर्तरूप देते जाओ, धीरे-धीरे क्रोध पर विजय प्राप्त होती जाएगी.
• विश्व कल्याण की भावना रखने वाले सच्चे संत जिनकी स्वीकार्यता जाति, धर्म, भाषा, विचारधारा से परे थी, वो दुनिया को एक सच्चा सतमार्ग दिखकर स्वयं मोक्ष मार्ग को गमन कर गये उनकी अलौकिक आभा कण-कण में विद्यमान होकर सदैव सुशोभित होती रहेगी,
• सूक्ष्म की बात करते हैं, लेकिन सूक्ष्म दृष्टि भी रखना चाहिए, आत्मा को देखने के लिए सूक्ष्म-दृष्टि की आवश्यकता है, भीतर से दृष्टि में एकाग्रता आनी चाहिए.
• जिस बाहृा पदार्थ का हमने त्याग किया वह हमारा था ही नहीं, ऐसा भाव आना चाहिए तभी वह त्याग का अभिमान हो सकता है.
• जो दूसरे के अवगुण देखता है और दूसरे को सुखी देखकर ईर्ष्या करता है वह कभी तृप्ति, सुख और शांति का अनुभव नहीं कर सकता.
• ज्ञान को इतना संयत बनाओ, कि उससे कुछ ज्ञेय न चिपके, विस्मृति अपने आपमें महत्वपूर्ण है, दुनिया स्मृति चाहती है, साधक को तो विस्मृति चाहिए इसी में विश्राम है, उपयोग का
• जरूरी नहीं कि हर समय जुबां पर भगवान का नाम आए वो लम्हा भी भक्ति का होता है जब इंसान इंसान के काम आए
• तृष्णा की खाई आज तक नहीं भर सकी और न कभी भर सकती है वह तो मात्र स्वाभिमान के द्वारा ही भरी जा सकती है क्योंकि स्वाभिमानी कभी आशा नहीं रखता है, वह तो स्वाभिमान को ही अपना धन मानता है.
• आयु कर्म की हानि का नाम ही मरण है, इसी का नाम जीवन है, दीपक प्रकाशित हो रहा है कि तेल जल रहा है, इसे समझने का प्रयास करो। कलम (पेन) चल रही है कि स्याही खत्म हो रही है, इसे समझने का प्रयास करो। दिन अस्त होने से पहले प्रबंध कर लो वरन् इस संसार रूपी जगल में भटक जाओगे।
• आयु कर्म की हानि का नाम ही मरण है, इसी का नाम जीवन है, दीपक प्रकाशित हो रहा है कि तेल जल रहा है, इसे समझने का प्रयास करो। कलम (पेन) चल रही है कि स्याही खत्म हो रही है, इसे समझने का प्रयास करो। दिन अस्त होने से पहले प्रबंध कर लो वरन् इस संसार रूपी जगल में भटक जाओगे।
• लघु बनना सीख लो, क्योंकि लघु बने बिना विराटता का अनुभव नहीं मिल सकता है।
• अनुभव ही जीवन में काम आता है, सिर्फ किताबी ज्ञान कोई उपलब्धि नहीं दिला सकता है
• अर्थ को अर्थ ही मानो, परमार्थ नहीं। अर्थ के द्वारा गुणों की प्राप्ति नहीं हो सकती। समीचीन विद्या के द्वारा ही गुणों की प्राप्ति हो सकती है। आज हमने उस क्षेत्र को ताला लगा दिया है, जिस क्षेत्र को महावीर भगवान् ने अपनाकर आत्मा का कल्याण किया था |
• मानव कल्याण हम मात्र लौकिक शिक्षा के द्वारा नहीं कर सकते हैं। आज जैन समाज का लाखों रुपया विपरीत दिशा में खर्च होता है, उन रुपयों का सदुपयोग करो।
• जो प्रशंसा और निन्दा में हर्ष-विषाद नहीं करते हैं, उन्हें नमस्कार करो। जो गुण का समादर करता है, उसी के लिए भगवान् नेता है। दर्पण उठकर यह नहीं कहता कि मेरे में शक्ति है, मुझे देखकर अपनी सूरत देखो। चेहरा देखने वाला व्यक्ति स्वयं दर्पण के पास जाता है। अत: हमें अपने आपको देखने के लिए भगवान् के पास जाना ही पड़ेगा।
• धर्म के माध्यमों के प्रति लक्ष्य नहीं, धर्म के प्रति लक्ष्य होना चाहिए। चुनाव में विरोधी को भी ध्यान में रखकर चुनाव लड़ते हैं। हमें भी Against (विपरीतता) को ध्यान में रखना है, पर अपने को भी नहीं भूलना है। यही धर्म का वास्तविक लक्ष्य है। दुख का विचार करो, पर सुख के मार्ग को मत छोड़ो। कंकड़ के साथ गेहूँ को भी मत फेंको, वरना रोटी नहीं मिलेगी।